लोकसभा में बुधवार को गृहमंत्री अमित शाह ने एक ऐसा बिल पेश किया जिसने पूरे देश की राजनीति में हलचल मचा दी। इस amit shah bill lok sabha के तहत अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक लगातार जेल में रहता है, तो उसकी कुर्सी चली जाएगी। जैसे ही अमित शाह ने ये बिल रखा, विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए कड़ा विरोध जताया
Amit Shah Bill Lok Sabha: क्या है नया प्रस्ताव?
सरल भाषा में कहें तो, अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी अपराध के मामले में 30 दिन लगातार जेल में रहता है, तो उसकी कुर्सी अपने-आप छिन जाएगी।
👉 यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि ये सिर्फ उन अपराधों पर लागू होगा जिनकी सज़ा कम से कम 5 साल या उससे ज्यादा हो सकती है।
लेकिन हाँ, अगर वो जेल से बाहर आ जाता है तो दोबारा से उसी पद पर नियुक्त भी हो सकता है।

ओवैसी ने क्यों किया विरोध?
जैसे ही अमित शाह ने बिल पेश किया, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भड़क गए। उनका कहना है कि:
“ये बिल एजेंसियों को जज, जूरी और जल्लाद बना देगा। इससे चुनी हुई सरकारों को गिराने का रास्ता खुल जाएगा। ये तो गेस्टापो जैसा माहौल बना देगा।”
ओवैसी की बात पर विपक्षी सांसदों ने जोरदार नारेबाज़ी शुरू कर दी और नतीजा ये हुआ कि लोकसभा की कार्यवाही दोपहर 3 बजे तक स्थगित करनी पड़ी।

कौन-कौन से बिल हैं इसमें शामिल?
- संविधान (130वां संशोधन) बिल
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल
- केंद्र शासित प्रदेश शासन (संशोधन) बिल
तीनों मिलकर एक नया फ्रेमवर्क बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें नेताओं को जेल जाने पर उनकी पोज़ीशन से हटाना आसान हो जाएगा।
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी का बड़ा बयान
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने भी इसे “पूरी तरह विनाशकारी” बताया। उनका कहना था:
“भारतीय संविधान कहता है कि आप निर्दोष हैं जब तक कि अदालत दोष साबित न करे। लेकिन ये बिल उस सिद्धांत को बदल देता है और एक सरकारी अफसर प्रधानमंत्री से भी बड़ा बन जाता है।”
उन्होंने लोकसभा स्पीकर से कहा कि विपक्ष को अपनी बात रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए।

हमारे लिए क्यों मायने रखता है ये बिल?
ये बिल सिर्फ नेताओं की कुर्सी का मामला नहीं है, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर सीधा असर डाल सकता है। सवाल ये है कि – क्या ये कदम भ्रष्टाचार और अपराध से राजनीति को साफ करने की दिशा में होगा, या फिर विपक्ष के मुताबिक सरकार को असहमति दबाने का हथियार मिल जाएगा?
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